शनिवार, 28 सितंबर 2013
झरबेरी के बेर कहां हैं
बालवीर या पोगो ही मैं,
देखूं गुड़िया रोई|
चंदा मामा तुम्हें आजकल,
नहीं पूछता कोई|
आज देश के बच्चों को तो,
छोटा भीम सुहाता|
उल्टा चश्मा तारक मेहता,
का ही सबको भाता|
टाम और जेरी की जैसे,
धूम मची घर घर में|
बाल गणेशा उड़कर आते,
अब बच्चों के उर में|
कार्टून के स्वप्नों में ही,,
बाल मंडली खोई|
टू वन जा टू का टेबिल ही,
बच्चे घर घर पढ़ते|
अद्धा पौआ पौन सवैया,
बैठे कहीं सिकुड़ते|
क्या होते उन्तीस सतासी,
नहीं जानते बच्चे|
हिंदी से जो करते नफरत,
समझे जाते अच्छे|
इंग्लिश के आंचल में दुबकी,
हिंदी छुप छुप रोई|
आम नीम के पेड़ों पर अब,
कौन झूलता झूला|
अब्बक दब्बक दांयदीन का,
खेल जमाना भूला|
भूले ,ताल ,तलैया, सर से,
कमल तोड़कर लाना|
भूले, खेल खेल में इमली,
बरगद पर चढ़ जाना|
झरबेरी के बेर कहां हैं,
ना ही दिखे मकोई|
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