मंगलवार, 23 जून 2015

           जीवन देगा कौन भला

      पेड़ मिला था ,पेड़ मिला |
      मुझे राह में पेड़ मिला |
     
      पत्ते सूखे सूखे थे |
      डालों के मन रूखे थे |
      नहीं घोंसले कहीं रखे ,
      पंछी उस पर नहीं दिखे |
      बोला तना सुबक कर के,
      मैं तो दुनियां छोड़ चला  |

      जड़ में सेंध लगाईं थी |
      विष की दवा पिलाई थी |
      हींग रखी या मठा  पड़ा ,
      नहीं किसी को पता लगा |
      ऐसे कामों में लेकिन ,
      आगे है इंसान सदा |

       पेड़ हमें वह देते हैं |
       जिसको जीवन कहते हैं |
       मिले ओसजन पेड़ों से ,
       छोटे बड़े अधेड़ों से |          
      अगर  पेड़ न होंगे तो ,
      जीवन देगा कौन भला |  

    

बुधवार, 10 जून 2015


  गंदी कुल्फी
  मेरे घर के ठीक सामने ,
  आया कुल्फी वाला |
  चिल्लाया लो कुल्फी लाली ,
  कुल्फी ले लो लाला|

  लाला लाली दोनों दौड़े ,
  झटपट कुल्फी लाने |
  हाथ पकड़कर उनको रोका,
   उठकर दादी माँ ने |

  यह कुल्फी गन्दी है बच्चो ,
   दादी माँ चिल्लाई |
  किसी नदी नाले के गंदे ,
  जल से गई बनाई |

   यह कुल्फी खाई तो निश्चित ,
   आएगी  बीमारी|
   है  विरोध में दादी ने कर  ,
  डाला फतवा जारी |

सोमवार, 8 जून 2015

 

थकने से बच जाते


FILE


सुपर फास्ट में हाथीजी ने,
आरक्षण करवाया।

बहुत भीड़ थी इस कारण से,
आरएसी मिल पाया।

लोअर बर्थ पर हाथी भाई,
बैठे-बैठे आए।

बुरी तरह से थके हुए थे,
रेस्ट नहीं कर पाए।

बोले- इससे अच्छा तो हम,
बैठ प्लेन में आते।

पैसे थोड़े ज्यादा लगते,
थकने से बच जाते।
  भाई दूज 
भाई दूज पर भालू ने,
हथनी को बहन बनाया।

उसके हाथों से माथे पर,
लाल तिलक लगवाया।

फिर बोला वह प्यारी बहना,
मीठा तो खिलवाओ।

हथनी बोली भैया पहले,
सौ का नोट दिखाओ।

अगर परिश्रम करें...

गधेराम ने सौ में से सौ,
पूरे नंबर पाए।


 
खुशियों के मारे चिल्लाए,
चिल्लाकर बौराए।
 
उनकी मां ने पूछा बेटे,
आज खुशी यह कैसे?
जीत लिया है युद्ध कहीं क्या,
पानीपत का जैसे?
 
बोला गधा अरी ऐसी ये,
बात नहीं है अम्मा।
दुनियाभर के लोग गधे को,
कहते सदा निकम्मा।
 
पर मां मैंने सौ में से सौ,
पूरे नंबर पाए।
और गधेपन के स्तर से,
ऊंचा उठकर आए।
 
अगर परिश्रम गधे करें तो,
ऊंचा पद पा सकते।
रॉकेट लेकर चंदा मामा,
                                              के घर तक जा सकते।।

नए जमाने के नए साधन

Author

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

किया टाइप झट कम्प्यूटर पर,
फिर प्रिंटर पर कागज डाला।
हाथीजी ने बटन दबाकर,
सुंदर प्यारा प्रिंट निकाला।
 

 
फिर बोला भालू से दादा,
इसको लेकर शाला जाओ।
आवेदन मेरी छुट्टी का,
मेरे शिक्षक को दे आओ।
 
भालू बोला बड़े गधे हो,
क्या दिमाग बिलकुल ना पाया।
शाला की ई-मेल आईडी पर, 
इसको क्यों नहीं भिजाया।
 
नए जमाने के नए साधन,
अब तो जादूगर जैसे हैं।
काम फटाफट कर देते हैं,
                                              अगर जेब में कुछ पैसे हैं।

आओ चिड़िया

आओ चिड़िया आओ चिड़िया,
कमरे में आ जाओ चिड़िया। 


 
पुस्तक खुली पड़ी है मेरी,
एक पाठ पढ़ जाओ चिड़िया। 
 
नहीं तुम्हें लिखना आता तो,
तुमको अभी सिखा दूंगा मैं। 
अपने पापाजी से कहकर,
कॉपी तुम्हें दिल दूंगा मैं।
 
पेन रखे हैं पास हमारे,
चिड़िया रानी बढ़िया-बढ़िया। 
 
आगे बढ़ती इस दुनिया में,
पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी। 
तुमने बिलकुल नहीं पढ़ा है,
पता नहीं क्या है मजबूरी।
 
आकर पढ़ लो साथ हमारे। 
बदलो थोड़ी सी दिनचर्या। 
 
चिड़िया बोली बिना पढ़े ही,
आसमान में उड़ लेती हूं। 
चंदा की तारों की भाषा,
उन्हें देखकर पढ़ लेती हूं।
 
पढ़ लेती हूं बिना पढ़े ही,
जंगल-पर्वत-सागर-दरिया। 
 
धरती मां ने बचपन से ही,
मुझे प्राथमिक पाठ पढ़ाए। 
उड़ते-उड़ते आसमान से,
स्नातक की डिग्री लाए।
 
पढ़ लेती हूं मन की भाषा,
हिन्दी, उर्दू या हो उड़िया। 
 
तुम बस इतना करो हमारे,
लिए जरा पानी पिलवा दो। 
भाई-बहन हम सब भूखे हैं,
थोड़े से दाने डलवा दो।
 
हम भी कुछ दिन जी लें ढंग से
अगर बदल दें लोग नजरिया।

हिन्दुस्तानी खाना

न कौए को पिज्जा भाता,
न कोयल को बर्गर। 


 
उन्हें चाहिए हल्दी वाला,
दूध कटोरे भर-भर। 
 
दोनों मिले लंच टेबल पर,
बोले नहीं सुहाता। 
पिज्जा-बर्गर-चाऊमीन से,
तो जी उकता जाता। 
 
गरम परांठे मक्खन वाले,
सुबह-सुबह आजमाओ।
और लंच में दाल-भात-घी,
सब्जी के संग खाओ। 
 
तभी मिलेंगे पूर्ण विटामिन,
पोषक तत्व मिलेंगे। 
दिनभर उड़ते रहें गगन में,
फिर भी नहीं थकेंगे। 
 
सारी दुनिया को भाता है,
हिन्दुस्तानी खाना। 
हमने ही अपने खाने का,
                                                 मोल नहीं पहचाना

मछली की समझाइश‌

मेंढक बोला चलो सड़क पर,
जोरों से टर्राएं।


 
बादल सोया ओढ़ तानकर,
उसको शीघ्र जगाएं।
 
मछली बोली पहले तो हम,
लोगों को समझाएं।
 
पेड़ काटना बंद करें वे,

  [1]

चिड़िया रानी के

 

बैठ पेड़ पर चिड़िया रानी,
करती है मस्ती मनमानी।


 
फर-फर-फर-फर पंख चलाए।
फुर्र-फुर्र करती उड़ जाए। 
 
फिर से आकर बैठी छत पर। 
फुदक रही है मटक-मटककर। 
 
पता नहीं यह कब जाएगी। 
                                          किसके घर खाना खाएगी।

   बिल्ली दीदी हज  को 
   एक पतंगा मोबाइल पर ,
   लगा बात करने बिल्ली से|
   बोला क्षमा करेंगीं दीदी ,
   बोल रहा हूँ मैं दिल्ली  से |

     हाल यहाँ के ठीक नहीं हैं ,
    अफरा तफरी मची हुई है |
   शेर खा रहें हैं चूहों को ,
    निर्बल जनता डरी हुई है |

    चूहों को तो खास तौर पर,
   सिर्फ तुम्हारे लिए बनाया |
   यमदूतों ने चित्रगुप्त के ,
   खातों  में भी यही लिखाया |

   क्यों चूहों को शेर खा रहे ,
  शोध तुम्हें इस पर करना है |
  जल्दी आओ दीदी दिल्ली,
   आज बिल्लियों का धरना है|

  माल तुम्हारे हिस्से का है,
  कब्जा शेर जमाये बैठे |
  छोटे जीव जंतुओं तक का ,
   माल मज़े से खाए बैठे |

  सदियों से यह रीत रही है,
  चूहों को बिल्ली है  खाती  |
  सौ चूहे जब खा लेती है ,
  तब ही तो है को जा पाती |

 आगे परिश्रम कर लो दीदी,
  कठिन नहीं सौ चूहे खाना |
  इतनी ढीली क्यों हो दीदी,
  नहीं तुम्हें क्या हज को जाना |

  तितली उड़ती,चिड़िया उड़ती,

      
                                    तितली उड़ती,चिड़िया उड़ती
     कौये कोयल उड़ते|
     इनके उड़ने से ही रिश्ते,
   भू सॆ नभ के जुड़ते||

  धरती से संदेशा लेकर ,
                                                   पंख पखेरु जाते|
गंगा कावेरी की चिठ्ठी,
अंबर को दे आते|

पूरब से लेकर पश्चिम तक,
उत्तर -दक्षिण जाते|
भारत की क्या दशा हो रही ,
मेघों को बतलाते|

संदेशा सुनकर बाद‌लजी,
हौले से मुस्कराते,
पानी बनकर झर झर झर,
धरती की प्यास बुझाते|

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

    [१]
      छन्नूजी 
दाल भात रोटी मिलती तो.
छन्नू नाक चढ़ाते|
पुड़ी परांठे रोज रोज ही.
मम्मी से बनवाते|

हुआ दर्द जब पेट, रात को.
तड़फ तड़फ चिल्लाये|
बड़े डाक्टर ने इंजॆक्शन‌
आकर चार लगाये|

छन्नूजी अब दाल भात या.
रोटी ही खाते हैं|
पुड़ी परांठे.दिए  किसी ने
गुस्सा हो  जाते हैं|

        [२]
     हिन्दी भाषा का रुतवा |
  जब गुड़िया कापी में लिखती ,
  क, ख, ग, घ, च, छ ,ज |
  हंसकर सबको बतलाती है ,
  हिन्दी भाषा का रुतवा |

   मजबूरी में जब अंग्रेजी ,
  में ए. बी .सी .डी लिखती |
  हारी हारी थकी थकी सी ,
  सूखे पत्ते सी दिखती |

  गुस्से में कहती है मुझको ,
  हिन्दुस्तानी  पढ़ना है |
  अंग्रेजी भाषा से मुझको ,
  अभी नहीं माँ जुड़ना है |