सोमवार, 23 सितंबर 2013

प्रजातंत्र का राजा

प्रजातंत्र का राजा


एक कहानी बड़ी पुरानी, कहती रहती नानी।
शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी।

कभी शेर ने बकरी को, न घूरा न गुर्राया।
बकरी ने जब भी जी चाहा, उससे हाथ मिलाया।

शेर भाई बकरी दीदी के, जब तब घर हो आते।
बकरी के बच्चे मामा को, गुड़ की चाय पिलाते।

बकरी भी भाई के घर पर, बड़ी शान से जाती।
कभी मुगौड़े भजिए लड्डू, रसगुल्ले खा आती।

किंतु अचानक ही जंगल में, प्रजातंत्र घुस आया।
और प्रजा को मिली शक्तियों, से अवगत करवाया।

ऊंच-नीच होता क्या होता, छोटा और बड़ा क्या।
जाति धर्म वर्गों में होता, कलह और झगड़ा क्या।

निर्धन और धनी लोगों में, बड़ा फासला होता।
एक रहा करता महलों में, एक सड़क पर सोता।

शेर सिंह को जैसे ही यह, बात समझ में आई।
तोड़ी बकरी की गर्दन फिर, बड़े स्वाद से खाई।

 अब जो भी पशु मिलता उसको, उसे मार खा जाता।
जंगल में अब प्रजातंत्र का, वह राजा कहलाता।

प्रजातंत्र का मतलब भी वह ,दुनिया को समझाता।
इसी तंत्र में जिसका जो भी , मन  हो वह कर पाता।

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