सोमवार, 23 सितंबर 2013

बेईमानी का फल‌
मिली नौकरी चूहेजी को,
बस के परिचालक‌ की|
लगे समझने बस को जैसे,
खेती हो वह घर की|

 बस में बैठे सभी मुसाफिर,
उनसे टिकिट मंगाते|
पैसे तो वे सबसे लेते,
पर ना टिकिट बनाते|

 पूछा लोगों ने चूहेजी,
कैसी बेईमानी|
सरकारी पैसे से करते ,
क्यों ये छेड़ाखानी|

 बोला..टिकिट बनाता  हूं वह‌,
तुम तक पहुंच न पाते|
कागज़ खाने की आदत से,
टिकिट हमीं खा जाते|

 उत्तर सुन ,लोगों ने पूछा,
नोट क्यों नहीं खाये|
लिये टिकिट के रुपये हैं तो,
उनको कहां छुपाये|

 बगलें लगा झांकने चूहा,
छोड़ छाड़ बस भागा|
बिल्ली पीछे दौड़ पड़ी तो,
 मारा गया अभागा|

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