शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

    दूध गरम‌
बैठा लाला भारी भरकम,
चिल्लाता पीलो दूध गरम| 
    एक सड़क किनारे पट्टी में, 
है रखा कड़ाहा भट्टी में|
    भर भर गिलास पिलवाता है,
वह केवल पाँच रुपट्टी में|
देता  आदर सबको समान‌,
थोड़ा ज्यादा न थोड़ा कम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

 जो युवक युवतियाँ आते हैं,
लगते कतार में जाते हैं||
दादा दादी नाना नानी,
नाती पोतों को लाते हैं|
सब सुड़ सुड़ दूध सुड़कते हैं,
 ना करें यहां पर लाज शरम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

यह दूध बड़ा खुशबू वाला,
मीठा मीठा, केसर डाला|
मन जिसका ललचा जाता है,
पीने को होता मतवाला|
फहराता उसके चेहरे पर,
पल भर को खुशियों का परचम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

नेता अफसर भी आ जाते,
पीकर यह दूध अघा जाते|
यह दूध बहुत है गुणकारी,
पीने वालों को सम‌झाते|
जो भी इस रस्ते से निकला,
पग उसके जाते हैं थम,थम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

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