नहीं रहूंगा अब गुस्साके
मुझको दे दो अभी बनाके,
अम्मा गरमा गरम परांठे|
भूख लगी जोरों से मुझको,
आज सुबह से कुछ ना खाया|
गुस्सा गुस्सी के कारण मैं,
लंच पेक ना ले जा पाया|
पेट हुआ मां बिल्कुल खाली,
चूहे कूद रहे गन्नाके|
अम्मा तुमने तो बोला था,
ब्रेड बटर काजू खाना है|
किशमिह मिला दूध पीना है,
खाली पेट नहीं जाना है|
पर मां तुम तो हार गईं थी,
मेरी जिद्दम जिद के आगे|
भूख लगी जब शाला में तो,
हुआ मुझे भारी पछतावा|
सुबह कहा ना माना अम्मा,
मैंने तुझसे किया छलावा|
कान पकड़ अब कहता तुझसे,
नहीं करूंगा अब हठ आगे|
जैसा तू बोलेगी अम्मा,
मैं तेरा कहना मानूंगा|
सुबह नाश्ते में जो देगी,
खुशी खुशी से मैं खा लूंगा|
कभी नहीं झगड़ूंगा तुझ से.
नहीं रहूंगा अब गुस्साके|
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013
वीर बहादुर बनके रहना
वीर बहादुर बनके रहना
सांझ समय उस दिन मेले में,
हुआ अचानक हमला|
उस हमले को देख सहम गये,
राजू विमला कमला|
मुँह ढांके काले कपड़े से,
दिखे कई आतंकी|
दाग रहे थे तड़ तड़ गोले,
वे पागल वे सनकी|
भगदड़ मची लोग थे घायल,
इधर उधर को भागे|
कुछ ने जान बचा ली अपनी,
कुछ मर गये अभागे|
समझ न आया था लोगों को,
कहर कहां से बरपा|
चला रहे थे धड़ धड़ गोली,
भेजा किसका सरका|
जान बचाने जन समूह जब,
दौड़ रहा था आगे|
दुष्टों ने पीछे से आकर,
भड़ भड़ गोले दागे|
सब डर डर के दुबक गये थे,
जहां जगह मिल पाई|
भिड़ने की उन द्ष्टों से,
दम नहीं किसी में आई|
मरते गिरते देख जोर से,
विमला तब चिल्लाई|
इन दुष्टों का करो सामना,
मिलकर मेरे भाई|
सुनकर आवाजें विमला की,
हो गये लोग इकट्ठे|
उन दुष्टों पर फेके जूते,
ईंटें बोरे फट्टे|
जो जिसके हाथों में आया,
लेकर के वह दौड़ा|
जन समूह ने आगे बढ़कर,
दुष्टों का सिर फोड़ा|
तब आतंकी डरकर भागे,
करते करते फायर|
धीर वीर लोगों के आगे,
नहीं टिक सके कायर|
किंतु अचानक विमला के सिर,
पर एक गोली आई|
अपनी जान गवांकर उसने,
सबकी जान बचाई|
पकड़े गये सभी आतंकी,
बच्चों की हिम्मत से,
जीत सदा हासिल होती है,
बल कौशल ताकत से|
|
सांझ समय उस दिन मेले में,
हुआ अचानक हमला|
उस हमले को देख सहम गये,
राजू विमला कमला|
मुँह ढांके काले कपड़े से,
दिखे कई आतंकी|
दाग रहे थे तड़ तड़ गोले,
वे पागल वे सनकी|
भगदड़ मची लोग थे घायल,
इधर उधर को भागे|
कुछ ने जान बचा ली अपनी,
कुछ मर गये अभागे|
समझ न आया था लोगों को,
कहर कहां से बरपा|
चला रहे थे धड़ धड़ गोली,
भेजा किसका सरका|
जान बचाने जन समूह जब,
दौड़ रहा था आगे|
दुष्टों ने पीछे से आकर,
भड़ भड़ गोले दागे|
सब डर डर के दुबक गये थे,
जहां जगह मिल पाई|
भिड़ने की उन द्ष्टों से,
दम नहीं किसी में आई|
मरते गिरते देख जोर से,
विमला तब चिल्लाई|
इन दुष्टों का करो सामना,
मिलकर मेरे भाई|
सुनकर आवाजें विमला की,
हो गये लोग इकट्ठे|
उन दुष्टों पर फेके जूते,
ईंटें बोरे फट्टे|
जो जिसके हाथों में आया,
लेकर के वह दौड़ा|
जन समूह ने आगे बढ़कर,
दुष्टों का सिर फोड़ा|
तब आतंकी डरकर भागे,
करते करते फायर|
धीर वीर लोगों के आगे,
नहीं टिक सके कायर|
किंतु अचानक विमला के सिर,
पर एक गोली आई|
अपनी जान गवांकर उसने,
सबकी जान बचाई|
पकड़े गये सभी आतंकी,
बच्चों की हिम्मत से,
जीत सदा हासिल होती है,
बल कौशल ताकत से|
|
अच्छा नाम
अच्छा नाम
तीन पांच तू मत कर छोटू,
मैं दो चार लगाऊंगा|
तेरे सिर पर कई चढ़े हैं,
मैं सब भूत भगाऊंगा|
यही ठीक होगा अब बेटे,
मेरे सम्मुख मत आना
जब भी पड़े सामना मुझसे,
नौ दो ग्यारह हो जाना|
कभी न पड़ा तीन तेरह में,
सीधा सच्चा काम रहा|
नहीं चार सौ बीसी सीखी,
इससे अच्छा काम रहा|
शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013
कितने अच्छे अम्मा बाबू
कितने अच्छे अम्मा बाबूबाबूजी अम्मा से कहकर ,
भटा भर्ता बनवाते थे।
बड़े मजे से हँसकर हम सब,
रोटी के संग खाते थे।
धनिया,हरी प्याज ,लहसुन की,
तीखी चटनी बनती थी।
छप्पन भोजन से भी ज्यादा,
स्वाद हम सभी पाते थे।
घर में लगे ढेर तरुवर थे,
बिही आम के जामुन के।
तोड़ तोड़ फल सभी पड़ौसी,
मित्रों को बँटवाते थे।
काका के संग खेत गये तो,
हरे चने तोड़ा करते।
आग जलाकर इन्हीं चनों से,
होला हम बनवाते थे।
लुका लुकौअल खेल खेलते,
इधर उधर छिपते फिरते।
हँसते गाते धूम मचाते,
इतराते मस्ताते थे।
कभी नहीं बीमार पड़े हम,
स्वस्थ रहे सब बचपन में।
कई मील बाबू के संग हम,
रोज घूमने जाते थे।
कितने अच्छे अम्मा बाबू,
सच का पाठ पढ़ाया है।
कभी किसी का अहित न करना,
यही सदा समझाते थे।
कितने अच्छे अम्मा बाबू
कितने अच्छे अम्मा बाबूबाबूजी अम्मा से कहकर ,
भटा भर्ता बनवाते थे।
बड़े मजे से हँसकर हम सब,
रोटी के संग खाते थे।
धनिया,हरी प्याज ,लहसुन की,
तीखी चटनी बनती थी।
छप्पन भोजन से भी ज्यादा,
स्वाद हम सभी पाते थे।
घर में लगे ढेर तरुवर थे,
बिही आम के जामुन के।
तोड़ तोड़ फल सभी पड़ौसी,
मित्रों को बँटवाते थे।
काका के संग खेत गये तो,
हरे चने तोड़ा करते।
आग जलाकर इन्हीं चनों से,
होला हम बनवाते थे।
लुका लुकौअल खेल खेलते,
इधर उधर छिपते फिरते।
हँसते गाते धूम मचाते,
इतराते मस्ताते थे।
कभी नहीं बीमार पड़े हम,
स्वस्थ रहे सब बचपन में।
कई मील बाबू के संग हम,
रोज घूमने जाते थे।
कितने अच्छे अम्मा बाबू,
सच का पाठ पढ़ाया है।
कभी किसी का अहित न करना,
यही सदा समझाते थे।
खेल भावना
- खेल भावना
- एक सड़क पर मक्खी मच्छर,
- बैठ गये शतरंज खेलने|
- थे सतर्क बिल्कुल चौकन्ने
- एक दूजे के वार झेलने।
- मक्खी ने जब चला सिपाही,
- मच्छर ने घोड़ा दौड़ाया|
- मक्खी ने चलकर वजीर को,
- मच्छर का हाथी लुड़काया।
- मच्छर ने गुस्से के मारे,
- ऊँट चलाकर हमला बोला|
- मक्खी ने मारा वजीर से
- ऊँट हो गया बम बम भोला।
- ऊँट मरा जैसे मच्छर का,
- वह गुस्से से लाल हो गया|
- मक्खी बोली यह मच्छर तो,
- अब जी का जंजाल हो गया|
- मच्छर ने तलवार उठाकर,
- मक्खीजी पर वार कर दिया|
- मक्खी ने मच्छर का सीना
- चाकू लेकर पार कर दिया|
- मच्छर मक्खी दोनोँ का ही,
- पल में काम तमाम हो गया|
- देख तमाशा रुके मुसाफिर,
- सारा रस्ता जाम हो गया।
- खेलो खेल सदा मिलजुलकर,
- झगड़ा दुखदाई होता है|
- खेल खेल में लड़ जाना तो,
- बीज दुश्मनी के बोता है|
नाना आये
|
नाना आये
नाना आये, नाना आये, आज हमारे नाना आये| बोला तो था पिज्जा बर्गर, नाना चना चबेना लाये|ये मनमानी थी नानाकी, नाना की थी ये मनमानी| बात हमारी क्यों ना मानी, करना अपने मन की ठानी| हमने मांगे थे रसगुल्ले, नाना भुना चिखोना लाये|
नाना को मैंनेँ बोला था, बोला था मैंनें नाना को आज हमारा मन होता है, खाने का फल्ली दाना को| रिक्शे वाले से लड़ बैठे, बैठे खड़े बिदोना लाये|
हर दिन नानी से लड़ते हैं, लड़ते हैं नानी से हर दिन| उचक उचक कत्थक के जैसी, ताक धिना धिन ताक धिना धिन| साक्षात हाथी ले आये, कहते बड़ा खिलोना लाये|
सूरज दादा परेशान हैं-
सूरज दादा परेशान हैं-
सूरज दादा परेशान हैं,
हम जाकर राहत पहुँचायें|
आसमान में जाकर उनको,
काला चश्मा पहना आयें||
यह तो सोचो कड़ी धूप में ,
नंगे पांव चले आते हैं|
अंगारे से जलते रहते ,
फिर भी हँसते मस्ताते हैं|
किसी तरह भी पहुँचें उन तक
,ठंडा पेय पिलाकर आयें|
,सुबह सुबह तो ठंडे रहते,
पर दुपहर में आग उगलते|
सभी ग्रहों के पितृ पुरुष हैं ,
जग हित में स्वयं जलते रहते||
कुछ तो राहत मिल जायेगी ,
चलो उन्हें नहलाकर आयें|
दादा के कारण धरती पर
,गरमी सर्दी वर्षा आती|
उनकी गरमी से ही बदली ,
धरती पर पानी बरसाती||
चलो चलें अंबर में चलकर ,
उनको छाता देकर आयें|
बड़ी भोर से सांझ ढले तक ,
हर दिन कसकर दौड़ लगाते|
नहीं किसी से व्यथा बताते ,
पता नहीं कितने थक जाते||
धरती के सब बच्चे चलकर,
क्यों ना उनके पैर दबायें|
सूरज दादा परेशान हैं,
हम जाकर राहत पहुँचायें|
आसमान में जाकर उनको,
काला चश्मा पहना आयें||
यह तो सोचो कड़ी धूप में ,
नंगे पांव चले आते हैं|
अंगारे से जलते रहते ,
फिर भी हँसते मस्ताते हैं|
किसी तरह भी पहुँचें उन तक
,ठंडा पेय पिलाकर आयें|
,सुबह सुबह तो ठंडे रहते,
पर दुपहर में आग उगलते|
सभी ग्रहों के पितृ पुरुष हैं ,
जग हित में स्वयं जलते रहते||
कुछ तो राहत मिल जायेगी ,
चलो उन्हें नहलाकर आयें|
दादा के कारण धरती पर
,गरमी सर्दी वर्षा आती|
उनकी गरमी से ही बदली ,
धरती पर पानी बरसाती||
चलो चलें अंबर में चलकर ,
उनको छाता देकर आयें|
बड़ी भोर से सांझ ढले तक ,
हर दिन कसकर दौड़ लगाते|
नहीं किसी से व्यथा बताते ,
पता नहीं कितने थक जाते||
धरती के सब बच्चे चलकर,
क्यों ना उनके पैर दबायें|
दादी बोली
दादी बोली
जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
हैं दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित नातियों,
पोतों को ना भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
हैं दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित नातियों,
पोतों को ना भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
दादी बोली
दादी बोली
जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
हैं दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित नातियों,
पोतों को ना भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी,
दादा उससे ज्यादा|
दादी कहती ‘मैं’ शहजादी,
हैं दादा शह्जादा|
दादी का यह गणित नातियों,
पोतों को ना भाता|
बूढ़े लोगों को क्यों माने,
शहजादी ,शहजादा|
दादी बोली,अरे बुढ़ापा,
नहीं उमर से आता|
जिनका तन मन निर्मल होता,
वही युवा कहलाता|
इसी देश में
इसी देश में
इसी देश में कृष्ण हुये हैं,
इसी देश में राम|
सबसे पहिले जाना जग ने,
इसी देश का नाम|
इसी देश में भीष्म सरीखे,
दृढ़ प्रतिग्य भी आये|
इसी देश में भागीरथजी,
भू पर गंगा लाये|
इसी देश में हुये कर्ण से,
धीर वीर धन दानी|
इसी देश में हुये विदुर से,
वेद ब्यास से ग्यानी|
सत्य अहिंसा प्रेम सिखाना,
इसी देश का काम|
इसी देश में वीर शिवाजी,
सा चरित्र भी आया|
छत्रसाल जैसा योद्धा भी,
भारत ने उपजाया|
संरक्षण सम्मान सहित है,
शरणागत को देता |
जिसकी रक्षा में यह भारत,
लगा जान तक देता |
इसी देश में मात पिता हैं,
होते तीरथ धाम|
इसी देश में हर बेटी है,
दुर्गा की अवतारी|
सावित्री सीता की प्रतिमा,
भारत की हर नारी|
वचन दिया तो उसे निभाने,
सिर भी कटवा देते|
भरत भूमि के वीर पुत्र हैं,
इस धरती के बेटे|
यहां भुगतना पड़ा दुष्ट को,
पापों का परिणाम|
इसी देश में कौशल्या सी,
मातायें जनमी हैं|
मातु यशोदा देवकी मां की,
यही कर्म भूमि है|
ध्रुव प्रहलाद सी दृढ़ प्रतिग्य,
भारत मां की संतानें|
महावीर गौतम गांधी भी,
जनमें भारत मां ने|
मनुज धर्म की रक्षा के हित,
हुये घोर संग्राम|
दया धर्म ईमान सचाई,
हमने कभी ना छोड़ी|
प्रेम अहिंसा पर सेवा की,
डोर हमेशा जोड़ी|
किसी पीठ पर धोखे से भी,
वार किया ना हमनें|
सदा सामने खड़े हुये हम,
युद्ध भूमि में लड़ने|
भले हानियाँ लाख उठाईं,
हुये दुखद अंजाम|
इसी देश में कृष्ण हुये हैं,
इसी देश में राम|
सबसे पहिले जाना जग ने,
इसी देश का नाम|
इसी देश में भीष्म सरीखे,
दृढ़ प्रतिग्य भी आये|
इसी देश में भागीरथजी,
भू पर गंगा लाये|
इसी देश में हुये कर्ण से,
धीर वीर धन दानी|
इसी देश में हुये विदुर से,
वेद ब्यास से ग्यानी|
सत्य अहिंसा प्रेम सिखाना,
इसी देश का काम|
इसी देश में वीर शिवाजी,
सा चरित्र भी आया|
छत्रसाल जैसा योद्धा भी,
भारत ने उपजाया|
संरक्षण सम्मान सहित है,
शरणागत को देता |
जिसकी रक्षा में यह भारत,
लगा जान तक देता |
इसी देश में मात पिता हैं,
होते तीरथ धाम|
इसी देश में हर बेटी है,
दुर्गा की अवतारी|
सावित्री सीता की प्रतिमा,
भारत की हर नारी|
वचन दिया तो उसे निभाने,
सिर भी कटवा देते|
भरत भूमि के वीर पुत्र हैं,
इस धरती के बेटे|
यहां भुगतना पड़ा दुष्ट को,
पापों का परिणाम|
इसी देश में कौशल्या सी,
मातायें जनमी हैं|
मातु यशोदा देवकी मां की,
यही कर्म भूमि है|
ध्रुव प्रहलाद सी दृढ़ प्रतिग्य,
भारत मां की संतानें|
महावीर गौतम गांधी भी,
जनमें भारत मां ने|
मनुज धर्म की रक्षा के हित,
हुये घोर संग्राम|
दया धर्म ईमान सचाई,
हमने कभी ना छोड़ी|
प्रेम अहिंसा पर सेवा की,
डोर हमेशा जोड़ी|
किसी पीठ पर धोखे से भी,
वार किया ना हमनें|
सदा सामने खड़े हुये हम,
युद्ध भूमि में लड़ने|
भले हानियाँ लाख उठाईं,
हुये दुखद अंजाम|
इसी देश में कृष्ण हुये हैं,
इसी देश में राम|
सबसे पहिले जाना जग ने,
इसी देश का नाम|
इसी देश में भीष्म सरीखे,
दृढ़ प्रतिग्य भी आये|
इसी देश में भागीरथजी,
भू पर गंगा लाये|
इसी देश में हुये कर्ण से,
धीर वीर धन दानी|
इसी देश में हुये विदुर से,
वेद ब्यास से ग्यानी|
सत्य अहिंसा प्रेम सिखाना,
इसी देश का काम|
इसी देश में वीर शिवाजी,
सा चरित्र भी आया|
छत्रसाल जैसा योद्धा भी,
भारत ने उपजाया|
संरक्षण सम्मान सहित है,
शरणागत को देता |
जिसकी रक्षा में यह भारत,
लगा जान तक देता |
इसी देश में मात पिता हैं,
होते तीरथ धाम|
इसी देश में हर बेटी है,
दुर्गा की अवतारी|
सावित्री सीता की प्रतिमा,
भारत की हर नारी|
वचन दिया तो उसे निभाने,
सिर भी कटवा देते|
भरत भूमि के वीर पुत्र हैं,
इस धरती के बेटे|
यहां भुगतना पड़ा दुष्ट को,
पापों का परिणाम|
इसी देश में कौशल्या सी,
मातायें जनमी हैं|
मातु यशोदा देवकी मां की,
यही कर्म भूमि है|
ध्रुव प्रहलाद सी दृढ़ प्रतिग्य,
भारत मां की संतानें|
महावीर गौतम गांधी भी,
जनमें भारत मां ने|
मनुज धर्म की रक्षा के हित,
हुये घोर संग्राम|
दया धर्म ईमान सचाई,
हमने कभी ना छोड़ी|
प्रेम अहिंसा पर सेवा की,
डोर हमेशा जोड़ी|
किसी पीठ पर धोखे से भी,
वार किया ना हमनें|
सदा सामने खड़े हुये हम,
युद्ध भूमि में लड़ने|
भले हानियाँ लाख उठाईं,
हुये दुखद अंजाम|
इसी देश में कृष्ण हुये हैं,
इसी देश में राम|
सबसे पहिले जाना जग ने,
इसी देश का नाम|
इसी देश में भीष्म सरीखे,
दृढ़ प्रतिग्य भी आये|
इसी देश में भागीरथजी,
भू पर गंगा लाये|
इसी देश में हुये कर्ण से,
धीर वीर धन दानी|
इसी देश में हुये विदुर से,
वेद ब्यास से ग्यानी|
सत्य अहिंसा प्रेम सिखाना,
इसी देश का काम|
इसी देश में वीर शिवाजी,
सा चरित्र भी आया|
छत्रसाल जैसा योद्धा भी,
भारत ने उपजाया|
संरक्षण सम्मान सहित है,
शरणागत को देता |
जिसकी रक्षा में यह भारत,
लगा जान तक देता |
इसी देश में मात पिता हैं,
होते तीरथ धाम|
इसी देश में हर बेटी है,
दुर्गा की अवतारी|
सावित्री सीता की प्रतिमा,
भारत की हर नारी|
वचन दिया तो उसे निभाने,
सिर भी कटवा देते|
भरत भूमि के वीर पुत्र हैं,
इस धरती के बेटे|
यहां भुगतना पड़ा दुष्ट को,
पापों का परिणाम|
इसी देश में कौशल्या सी,
मातायें जनमी हैं|
मातु यशोदा देवकी मां की,
यही कर्म भूमि है|
ध्रुव प्रहलाद सी दृढ़ प्रतिग्य,
भारत मां की संतानें|
महावीर गौतम गांधी भी,
जनमें भारत मां ने|
मनुज धर्म की रक्षा के हित,
हुये घोर संग्राम|
दया धर्म ईमान सचाई,
हमने कभी ना छोड़ी|
प्रेम अहिंसा पर सेवा की,
डोर हमेशा जोड़ी|
किसी पीठ पर धोखे से भी,
वार किया ना हमनें|
सदा सामने खड़े हुये हम,
युद्ध भूमि में लड़ने|
भले हानियाँ लाख उठाईं,
हुये दुखद अंजाम|
गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013
rain basera
रैन बसेरा
नाम रखा है रैन बसेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा|
नीचे धरती ऊपर छप्पर,
खिड़की पर परदों की झालर|
सोफा सेट गद्दियों वाला,
बिछी हुई सुंदर मृगछाला|
कोनों में सुंदर गुलदस्ते|,
दरवाजों में परदे हँसते|
है घर में खुशियों का डेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
शयन कक्ष भी तीन बने हैं,
परदे बहुत महीन लगे हैं|
बड़े पलंगों पर गादी है,
चादर बिछी स्वच्छ सादी है|
शिवजी की होती हर हर है,
यह दादी का पूजा घर है|
जहां रामजी लड्डू खाते,
कृष्ण कन्हैया धूम मचाते|
सबको सबसे प्रेम घनेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
इस कमरे में दादी दादा,
उच्च विचार काम सब सादा|
सभी दुआयें लेने आते,
दादी दादा झड़ी लगाते|
बच्चे धूम मचाते दिन भर,
भरा लबालब खुशियों से घर|
दादाजी के लगें ठहाके,
लोट पोट हैं हँसा हँसा के|
कण कण में आनंद बिखेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
नाम रखा है रैन बसेरा,
दो मंजिल का घर है मेरा|
नीचे धरती ऊपर छप्पर,
घर दिखता है कितना सुंदर|बैठक खाना भव्य मनोहर,
खिड़की पर परदों की झालर|
सोफा सेट गद्दियों वाला,
बिछी हुई सुंदर मृगछाला|
कोनों में सुंदर गुलदस्ते|,
दरवाजों में परदे हँसते|
है घर में खुशियों का डेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
शयन कक्ष भी तीन बने हैं,
परदे बहुत महीन लगे हैं|
बड़े पलंगों पर गादी है,
चादर बिछी स्वच्छ सादी है|
शिवजी की होती हर हर है,
यह दादी का पूजा घर है|
जहां रामजी लड्डू खाते,
कृष्ण कन्हैया धूम मचाते|
सबको सबसे प्रेम घनेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
इस कमरे में दादी दादा,
उच्च विचार काम सब सादा|
सभी दुआयें लेने आते,
दादी दादा झड़ी लगाते|
बच्चे धूम मचाते दिन भर,
भरा लबालब खुशियों से घर|
दादाजी के लगें ठहाके,
लोट पोट हैं हँसा हँसा के|
कण कण में आनंद बिखेरा|
दो मंजिल का घर है मेरा|
नाना आये
नाना आये, नाना आये,
आज हमारे नाना आये
बोला तो था पिज्जा बर्गर,
नाना चना चबेना लाये|
ये मनमानी थी नानाकी,
नाना की थी ये मनमानी|
बात हमारी क्यों ना मानी,
करना अपने मन की ठानी|
हमने मांगे थे रसगुल्ले,
नाना भुना चिखोना लाये|
नाना को मैंनेँ बोला था,
बोला था मैंनें नाना को
आज हमारा मन होता है,
खाने का फल्ली दाना को|
रिक्शे वाले से लड़ बैठे,
बैठे खड़े बिदोना लाये|
हर दिन नानी से लड़ते हैं,
ल ड़ते हैं नानी से हर दिन|
उचक उचक कत्थक के जैसी,
ताक धिना धिन ताक धिना धिन|
साक्षात हाथी ले आये,
कहते बड़ा खिलोना लाये|
शनिवार, 28 सितंबर 2013
पौधे पालें
खुशी खुशी से कहीं लगालें,
चलो चलो हम पौधे पालें|
आज राम का जन्म दिवस है,
चलो मना लें धूम धाम से|
लाकर चार लगा दें पौधे ,
जन्म दिवस के इसी नाम से|
चलो खाद कुछ पानी डालें|
पप्पू हुआ पास कक्षा में,
सबसे अधिक अंक आये हैं|
इसी खुशी में आम नीम के,
दादाजी पौधे लाये हैं|
पप्पू से रोपण करवालें
बाबूजी के पुण्य दिवस पर,
नमन उन्हें झुककर करना है|
लाकर पौधे पाँच कहीं से,
धरती को अर्पण करना है|
उनकी ढेर दुआयें पालें|
आज हमारे मुन्नाजी का,
चयन हुआ सरकारी पद पर|
चलो लगा दो कुछ तो पौधे,
आंगन में या घर की छत पर|
आओ पर्यावरण बचा लें|
किसी तरह से किसी बहाने,
पौधे हमें लगाना ही हैं|
देकर पानी खाद प्रेम का,
दिन दिन उन्हें बढ़ा ही है|
जीवन का यह लक्ष्य बनालें|
खुशी खुशी से कहीं लगालें,
चलो चलो हम पौधे पालें|
आज राम का जन्म दिवस है,
चलो मना लें धूम धाम से|
लाकर चार लगा दें पौधे ,
जन्म दिवस के इसी नाम से|
चलो खाद कुछ पानी डालें|
पप्पू हुआ पास कक्षा में,
सबसे अधिक अंक आये हैं|
इसी खुशी में आम नीम के,
दादाजी पौधे लाये हैं|
पप्पू से रोपण करवालें
बाबूजी के पुण्य दिवस पर,
नमन उन्हें झुककर करना है|
लाकर पौधे पाँच कहीं से,
धरती को अर्पण करना है|
उनकी ढेर दुआयें पालें|
आज हमारे मुन्नाजी का,
चयन हुआ सरकारी पद पर|
चलो लगा दो कुछ तो पौधे,
आंगन में या घर की छत पर|
आओ पर्यावरण बचा लें|
किसी तरह से किसी बहाने,
पौधे हमें लगाना ही हैं|
देकर पानी खाद प्रेम का,
दिन दिन उन्हें बढ़ा ही है|
जीवन का यह लक्ष्य बनालें|
चीख रही पुरजोर गिलहरी
रखे हिमालय को कंधे पर,
चली सूर्य की ओर गिलहरी।
कहां खतम है आसमान का,
ढूंढ़ रही है छोर गिलहरी।
अंबर से वह देख रही है,
धरती की ओझल हरियाली।
इसी बात पर जोर-जोर से,
मचा रही है शोर गिलहरी।
श्वांस और उच्छवांस कठिन है,
धरती पर अब जीवन भारी।
यही सोचकर आज हो रही,
है उदास घनघोर गिलहरी।
कण-कण दूषित आसमान का,
मिट्टी की रग-रग जहरीली,
यही बताने आज रही है,
सबको ही झखझोर गिलहरी।
आँखें आंसू से परिपूरित,
दशा देखकर इस धरणी की|
अब तो जागो,अब तो चेतो,
चीख रही पुरजोर गिलहरी।
रखे हिमालय को कंधे पर,
चली सूर्य की ओर गिलहरी।
कहां खतम है आसमान का,
ढूंढ़ रही है छोर गिलहरी।
अंबर से वह देख रही है,
धरती की ओझल हरियाली।
इसी बात पर जोर-जोर से,
मचा रही है शोर गिलहरी।
श्वांस और उच्छवांस कठिन है,
धरती पर अब जीवन भारी।
यही सोचकर आज हो रही,
है उदास घनघोर गिलहरी।
कण-कण दूषित आसमान का,
मिट्टी की रग-रग जहरीली,
यही बताने आज रही है,
सबको ही झखझोर गिलहरी।
आँखें आंसू से परिपूरित,
दशा देखकर इस धरणी की|
अब तो जागो,अब तो चेतो,
चीख रही पुरजोर गिलहरी।
झरबेरी के बेर कहां हैं
बालवीर या पोगो ही मैं,
देखूं गुड़िया रोई|
चंदा मामा तुम्हें आजकल,
नहीं पूछता कोई|
आज देश के बच्चों को तो,
छोटा भीम सुहाता|
उल्टा चश्मा तारक मेहता,
का ही सबको भाता|
टाम और जेरी की जैसे,
धूम मची घर घर में|
बाल गणेशा उड़कर आते,
अब बच्चों के उर में|
कार्टून के स्वप्नों में ही,,
बाल मंडली खोई|
टू वन जा टू का टेबिल ही,
बच्चे घर घर पढ़ते|
अद्धा पौआ पौन सवैया,
बैठे कहीं सिकुड़ते|
क्या होते उन्तीस सतासी,
नहीं जानते बच्चे|
हिंदी से जो करते नफरत,
समझे जाते अच्छे|
इंग्लिश के आंचल में दुबकी,
हिंदी छुप छुप रोई|
आम नीम के पेड़ों पर अब,
कौन झूलता झूला|
अब्बक दब्बक दांयदीन का,
खेल जमाना भूला|
भूले ,ताल ,तलैया, सर से,
कमल तोड़कर लाना|
भूले, खेल खेल में इमली,
बरगद पर चढ़ जाना|
झरबेरी के बेर कहां हैं,
ना ही दिखे मकोई|
सदस्यता लें
संदेश (Atom)