सूरज दादा परेशान हैं-
सूरज दादा परेशान हैं,
हम जाकर राहत पहुँचायें|
आसमान में जाकर उनको,
काला चश्मा पहना आयें||
यह तो सोचो कड़ी धूप में ,
नंगे पांव चले आते हैं|
अंगारे से जलते रहते ,
फिर भी हँसते मस्ताते हैं|
किसी तरह भी पहुँचें उन तक
,ठंडा पेय पिलाकर आयें|
,सुबह सुबह तो ठंडे रहते,
पर दुपहर में आग उगलते|
सभी ग्रहों के पितृ पुरुष हैं ,
जग हित में स्वयं जलते रहते||
कुछ तो राहत मिल जायेगी ,
चलो उन्हें नहलाकर आयें|
दादा के कारण धरती पर
,गरमी सर्दी वर्षा आती|
उनकी गरमी से ही बदली ,
धरती पर पानी बरसाती||
चलो चलें अंबर में चलकर ,
उनको छाता देकर आयें|
बड़ी भोर से सांझ ढले तक ,
हर दिन कसकर दौड़ लगाते|
नहीं किसी से व्यथा बताते ,
पता नहीं कितने थक जाते||
धरती के सब बच्चे चलकर,
क्यों ना उनके पैर दबायें|
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