मंगलवार, 24 नवंबर 2020

अब पछताए होत का?

अब पछताए होत का?

भोला का से लगा हुआ है। 1 किलोमीटर के लगभग चले भी नहीं कि शहर का क्षेत्र आरंभ हो जाता है। उसके बाद इतना ही चलने पर भोला का स्कूल आ जाता है। भोला 8वीं कक्षा में पढ़ रहा है। अभी पिछले साल तक पैदल ही शाला जाता था। 2 किलोमीटर होता ही कितना है? बस यूं गए और यूं वापस आए। फिर ग्रामीण परिवेश में पला-बढ़ा भोला! उसको पैदल चलने में ही बड़ा बड़ा आनंद आता था |   

उसे अपने दादाजी से हमेशा प्रेरणा मिलती थी, जो फुरसत के समय में देश के बांके वीरों, शहीदों और क्रांतिकारियों की कहानियां सुनाते रहते थे। क्रांतिकारी तो अंग्रेजों से बचने के लिए गांव-गांव और शहर-शहर घूमते-फिरते थे। दिनभर में 50-60 किलोमीटर चलना मामूली बात थी। कभी-कभी तो ये लोग इससे भी ज्यादा चल लेते थे।

दादाजी बताते थे कि अपनी युवावस्था में वे भी 20-25 किलोमीटर तक रोज पैदल चल लेते थे। घर से उनके खेत की दूरी ही 5 किलोमीटर थी और दादाजी सामान्यत: दिन में 2 चक्कर रोज मार लिया करते थे। उसकी दादी का मायका भी गांव से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर था और दादाजी बताते हैं कि वे दादी को लेने और छोड़ने पैदल ही जाते थे।

खैर, अब तो दादाजी ने उसे साइकल ले दी है। अब वह शाला साइकल से ही जाता-आता है। दादाजी ने उसे एक ही बात समझाई है कि जहां तक बन सके, दूसरों की सहायता करना चाहिए। उचित मार्गदर्शन देना ही बड़े-बुजुर्गों का कर्तव्य होता है और छोटों का काम बड़ों के आदेशों का पालन करना और उनकी अच्छी बातों को आत्मसात करना होता है। भोला दादाजी की बातों को ध्यान से सुनता और आदेशों का पालन करता था।

घर से शाला के बीच में सड़क किनारे सहदेव का घर पड़ता था। शाला जाते समय दोनों साथ हो लेते और वापस भी साथ-साथ ही आते थे। दोनों लंगोटिया यार थे। सहदेव थोड़ा मनमौजी स्वभाव का लड़का था और किसी बात को गंभीरता से नहीं लेता था।
भोला सहदेव के घर से आते-जाते देखता था कि सहदेव की एक गाय और एक भैंस बिजली के खंभे से बंधी रहती है। दोनों जानवर रस्सी के सहारे खंभे के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं।

एक दिन शाम को दोनों शाला से लौट रहे थे तो भोला ने देखा कि सहदेव की भैंस बिजली के खंभे से रगड़-रगड़कर अपनी पीठ खुजला रही है और रगड़ से बिजली का खंभा जोरों से हिल रहा है। खंभे के ऊपर के तार भी झनझनाकर लहरा रहे हैं।
'अरे सहदेव देखो, तुम्हारी भैंस खंभे से रगड़-रगड़कर पीठ खुजा रही है और खंभा जोरों से हिल रहा है। कहीं खंभे में करंट न आ जाए?' भोला ने सतर्क होते हुए सहदेव से कहा।

'क्या मजाक करते हो? खंभा हिलने से क्या उसमें करंट आ जाता है? हम तो कई सालों से इसी खंभे में जानवर बांधते आ रहे हैं और कभी भी करंट नहीं लगा, जो आज लग जाएगा?' सहदेव ने बड़ी ही लापरवाही से कहा।

'नहीं सहदेव, खंभों में करंट आ जाता है। ऊपर जो बिजली के तार लगे हैं न, उनमें करंट रहता है। खंभे हिलने से यदि तार खंभे में अथवा उसके क्रॉस आर्म, जिस पर इंसुलेटर रखकर तार बांधे गए हैं, छू जाता है तो सारे खंभे में करंट आ जाता है।' भोला ने समझाया।
'फिर तो हर खंभे में करंट आ जाना चाहिए?' सहदेव ने मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया।

'ऐसे करंट नहीं आता यार, पूरा खंभा सुरक्षित है। खंभे में चीनी मिट्टी के इंसुलेटर लगे हैं और उसके ऊपर तार बंधे रहते हैं। सामान्यत: खंभे में करंट नहीं आता।'

'लेकिन ये इंसुलेटर क्या बला हैं?' सहदेव बीच में ही बोल पड़ा।

'यार इतना भी नहीं जानते? इंसुलेटर कुचालक होता है जिसमें करंट नहीं बहता।' भोला ने समझाया।

'हां मित्र, स्मरण तो आ रहा है। अपनी विज्ञान की किताब में कुचालक व सुचालक ये शब्द लिखे तो हैं।' सहदेव दिमाग पर जोर डालते हुए बोला।

'देखो, 2 तरह की वस्तुएं होती हैं- एक चालक जिसमें से होकर करंट बहता है और दूसरी कुचालक जिसमें से करंट नहीं बहता। तारों में से करंट बहता है इसलिए वह चालक कहलाया और इंसुलेटर में से करंट नहीं बहता, अत: वह कुचालक कहलाया।'

भोला फिर बोला, 'ऊपर देखो, 3 इंसुलेटरों पर अलग-अलग 3 तार बंधे हैं, जो आगे दूसरे खंभों की तरफ जा रहे हैं। ये इंसुलेटर एक लोहे की मजबूत आकार की भुजा पर बंधे हैं और यह भुजा खंभे से बंधी है। इंसुलेटर पर तार रखे हैं इसलिए खंभे पर करंट नहीं आ रहा है।' भोला समझा रहा था।
'जब तार इंसुलेटर पर बंधे हैं तो फिर करंट?' सहदेव बीच में फिर बोल पड़ा।

'पूरी बात तो सुनो मित्र, अभी तो करंट नहीं आ रहा है किंतु तार यदि इंसुलेटर से निकलकर लोहे के हिस्से पर गिर पड़ा तो करंट आएगा कि नहीं? यदि तार टूटकर जमीन पर गिर पड़ा तो करंट नहीं आएगा क्या? यदि इंसुलेटर फूट गया और तार लोहे वाले किसी भाग में गिर पड़ा तो करंट आएगा कि नहीं? भोला ने फिर समझाने का प्रयास किया।
'लेकिन यह तो तब होगा, जब इंसुलेटर फूटेगा अथवा तार टूटेगा। अभी तक तो ऐसा कभी नहीं हुआ। जब होगा, तब देखा जाएगा।' सहदेव ने बात टाल दी।

दूसरे दिन जैसे ही भोला सहदेव को लेने उसके घर के सामने रुका तो उसने देखा कि उसके घर के सामने भीड़ लगी है। गांव के 15-20 लोग एकत्रित हैं। उसने अपनी साइकल एक तरफ टिकाई और पास जाकर देखा तो पाया कि खंभे के नीचे सहदेव की भैंस मरी पड़ी है और थोड़ी दूरी पर उसकी गाय भी अंतिम सांसें लेती हुई मुंह से झाग निकालते हुए फड़फड़ा रही है। दोनों के पैर बिजली के तारों से उलझे हुए हैं।
सहदेव दौड़कर भोला के पास आ गया और फफककर रोने लगा व कहने लगा, 'तुमने ठीक ही कहा था। मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी और यह नुकसान हो गया।'

सहदेव के बापू भी पास आ गए और बोले, 'बेटा 20 हजार की भैंस और 30 हजार की गाय ये सब मिलाकर 50 हजार का नुकसान हो गया। 1-1 रुपया जोड़कर दोनों जानवर खरीदे थे। रोजी-रोटी का आधार ही छिन गया।' सहदेव के बापू की आंखों में आंसू आ गए।

'काकाजी, यह तो गनीमत रही कि आपके जानवर ही मरे हैं। अगर आसपास आप, सहदेव अथवा घर का कोई और सदस्य भी होता तो वह भी तार की चपेट में आकर अपनी जान गंवा सकता था। भगवान को धन्यवाद दो कि बहुत बड़ा हादसा होते-होते बच गया। बिजली किसी को नहीं छोड़ती। सावधानी से उपयोग करो तो ही लाभ होता है अन्यथा जानलेवा तो है ही। बिजली का प्रयोग बहुत ही सावधानी से करना चाहिए।' भोला फिर समझाने लगा।
सहदेव सोच रहा था कि काश! भोला की बात मान ली होती और जानवरों को खंभे से न बांधने की सलाह बापू को दे दी होती तो यह दुर्घटना नहीं होती। लेकिन अब क्या हो सकता था?

'अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत।'

खंभे के ऊपर बंधी टिन की प्लेट पर 2 हड्डियों के बीच मानव खोपड़ी का चित्र जैसे सहदेव को चिढ़ा रहा था। उसने आज ठीक से देखा था कि चित्र के नीचे यह भी लिखा है- सावधान! खतरा 11,000 वोल्ट।


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