हाथ पैर बन जाते पंख
बन गए होते हाथ पैर ही,
काश हमारे पंख।
और परों के संग जुड़ जाते,
कंप्यूटर से अंक।
एक' बोलने पर हो जाते,
उड़ने को तैयार।
'दो' कहते तो आगे बढ़ते,
अपने पंख पसार।
बढ़ने लगती 'तीन' बोलने,
पर खुद से ही चाल।
'चार' बोलकर- उड़कर नभ में,
करते खूब धमाल।
'पांच' बोलते ही झट से हम,
मुड़ते दाईं ओर।
कहते 'छह' तो तुरत पलटकर,
उड़ते बाईं ओर।
'सात' शब्द के उच्चारण से,
जाते नभ के पार।
'आठ' बोलकर तुरत जोड़ते,
नक्षत्रों से तार।
'नौ' कहने पर चलते वापस,
हम धरती की ओर।
'दस' पर पैर टिका धरती पर,
खूब मचाते शोर।
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