रविवार, 22 नवंबर 2020

पानी फेके कम से कम

 

पानी फेकें कम से कम

    नहीं बचा नदियों में दम,

    पानी बहुत बचा है कम.

    अगर न होगा पानी तो,

   कैसे बचे रहेंगे हम।

 


     खुला छोड़ नल आते हैं,

        नी व्यर्थ बहाते हैं                                     

     भर गिलास पानी लेते,

         आधा ही पी पाते हैं।  

     जितना हमको पीना है,

       उतना क्यों न लेते हम.।

 

        

 

      ढेर -ढेर वर्षा का जल,

      नदी बहाकर ले जाती।

       जगह -जगह कंक्रीट बिछे,

       धरती सोख नहीं पाती।

        धरती भीतर तक सूखी,

        जो पहले रहती थी नम


 हरे - भरे थे वन उपवन                                  

हमनें हाय काट डाले।                      

जैसे जल देवता के ही,

हमने हाथ छाँट डाले। 

छीने ठौर परिंदों के,

पशु फिरते होकर बेदम।

 

          नहीं बरसता इतना जल,

           जितनी हमको चाहत है।

          अति वृष्टि या सूखे से,

          सारा ही जग आहत है।

          सूरज आग उगलता है,

          धरा तवे सी हुई गरम।

 पर्यावरण बचाया तो

 शायद पानी बच जाये।

 पानी अगर बचाया तो,

जीवन आगे चल जाये।

पेड़ अधिक से अधिक लगें,

पानी फेकें कम से कम।

 

   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें