बाल कविता : बरफ के गोले
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आई है अब गरमी भोले,
खाएं चलो बरफ के गोले।
छुपन छुपाई खेल खेलकर,
बदन पसीने से लथपथ है।
दौड़ दौड़कर हार चुके हैं,
बहुत हो चुकी अब गपशप है।
बंद अकल के जो पट खोले
खाएं चलो बरफ के गोले।
मां ने नीबू के रस वाला,
दिन में शरबत खूब पिलाया।
लाल लाल तरबूज काटकर,
मीठा मीठा मुझे खिलाया।
बंद द्वार मुश्किल से खोले।
खाएं चलो बरफ के गोले।
तीन बरफ के ठंडे गोले,
अभी अभी मुन्नू ने खाए।
रंग बिरंगे सजे सजीले,
दो गन्नूजी घर ले आए।
'एक मुझे दो' बापू बोले।
खाएं चलो बरफ के गोले।
पर ज्यादा गोले खाना भी,
होता बहुत हानिकारक है।
बीमारी का डर हॊता है।
नहीं जरा भी इसमें शक है।
बार-बार फिर भी मन डोले।
खाएं चलो बरफ के गोले।
मुझे और मेरे बच्चों को भी बर्फ के गोले बहुत पसंद है ..आजकल तो गर्मी में तो पूछो मत ...पानी आ रहा है मुहं में ..
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