बाल कविता
दादीजी के बोल
मिश्री जैसे मीठे मीठे,दादीजी के बोल पिताजी|
परियों वाली कथा सुनाती,
किस्से बड़े पुराने|
रहें सुरक्षा वाली छतरी,
हम बच्चों पर ताने|
बच्चे लड़ते आपस में तो,
न्यायधीश बन जातीं|
अपराधी को वहीं फटाफट,
कन्बुच्ची लगवातीं|
कितनी प्यारी प्यारी बातें,
बातें हैं अनमोल पिताजी|
यह कमरा है परदादा का,
उसमें थीं परदादी|
इस आंगन में रची गई थी,
बड़ी बुआ की शादी|
अब तक बैठीं रखे सहेजे,
पाई धेला आना|
पीतल का हंडा बतलातीं,
दो सौ साल पुराना|
दादी हैं इतिहास हमारा ,
दादी हैं भूगोल पिताजी|
रोज शाम को दादाजी से,
चिल्लर लेकर जातीं|
दिखे जहां कमजोर भिखारी,
उन्हें बांटकर आतीं|
चिड़ियों को दाना चुगवातीं,
पिलवातीं हैं पानी|
पर सेवा में दया धर्म में,
बनी अहिल्या रानी|
चुपके चुपके मदद सभी की,
नहीं पीटतीं ढोल पिताजी|
अब भी काम वालियां हर दिन,
सांझ ढले आ जातीं|
चार चार रोटी सब्जी का ,
अगरासन ले जातीं|
दिन ऊगे से बड़े बरेदी,
कक्का घर आ जाते|
कबरी गैया बित्तो भैंसी,
का नित दूध लगाते|
मक्खन दही मलाई मट्ठा,
लिया कभी ना मोल पिताजी|
सप्त ऋषि ध्रुवतारा दिखते,
उत्तर में बतलातीं|
मंगल लाल लाल दिखता है,
शुक्र कहाँ?समझातीं|
तीन तरैयों वाली डोली,
को कहतीं हैं हिरणी|
यह भी उन्हें पता है नभ में,
कहाँ विचरता भरणी|
लगता जैसे सारी विद्या,
आती उन्हें खगोल पिताजी|